अवतार सिंह संधू उर्फ ‘पाश’इंकलाबी पंजाबी कवि थे। उनका जन्म 9 सितंबर 1950 को पंजाब के जालंधर ज़िले के तलवंडी सलेम गांव में हुआ था। पंजाबी में उनके कई कविता संग्रह प्रकाशित हुए। पूरा देश उन्हें क्रांतिकारी कवि के नाम से जानता है। कम उम्र से ही उन्होंने कविताएं लिखनी शुरू कर दी थी नक्सलवादी आंदोलन ने वे काफी प्रभावित थे। उनकी रचनाओं में इसका प्रभाव साफ झलकता है। जहां ‘पाश’ की कविताओं में गांव की मिटटी की महक महसूस होती है, वहीं इंसानी भावनाओं, दुखों की अभिव्यक्ति भी उनकी कविताओं में मिलती है। उनकी एक खास विशेषता है कि पंजाबी भाषा के कवि होने के बावजूद वह हिंदी पट्टी के भी प्रिय कवि माने जाते रहे। आज यानी 23 मार्च को ‘पाश’ की पुण्य तिथि के रूप में मनाया जाता है। है। 23 मार्च, 1988 को आतंकवादियों ने इस क्रांतिकारी जन-कवि की गोली मारकर हत्या कर दी थी। ‘पाश’ को पूरी दुनिया के लिए शोषण, दमन और अत्याचारों से मुक्त समतावादी दुनिया की चाह थी। यही उनका सपना था, जो आज भी उनकी कविताओं से झांकता महसूस होता है।
भगत सिंह के कदमो पर चले पाश।
जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर चमन लाल का कहना है कि भगत सिंह और पाश के बीच कई समानताएं हैं। दोनों की मृत्यु का दिन (23 मार्च) भी एक ही है और दोनों सितंबर के महीने में ही पैदा भी हुए थे। वो कहते हैं जिस दिन भगत सिंह को फांसी दी जानी थी उस दिन वो लेनिन की किताब पढ़ रहे थे और पढ़ते हुए उन्होंने किताब के पन्ने को मोड़ कर रख दिया था, इस बात का ज़िक्र पाश अपनी कविता में करते हैं और कहते हैं – भगत सिंह ने शहादत से पहले किताब के जिस पन्ने को मोड़ा था, पंजाब के युवाओं को उसके आगे पढ़ने की ज़रूरत है। अपने आदर्श भगत सिंह की शहादत पर पाश अपनी कविता 23 मार्च में लिखते हैं – शहीद होने की घड़ी में वह अकेला था, ईश्वर की तरह लेकिन ईश्वर की तरह निस्तेज़ न था।