National: असम(Assam) के एक सुदूर इलाके में रहने वाली 50 वर्षीय महिला ज़ुबैदा बेगम , जिसे अपने परिवार का पेट भरने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। एक अकेली लड़ाई लड़ रही है- यह साबित करने के लिए कि वह भारत की नागरिक है। इनको असम(Assam) के विदेशी ट्रिब्यूनल द्वारा एक विदेशी घोषित किया गया, इसके बाद गुवहाटी हाईकोर्ट की और से भी इस महिला को निराशा का ही मुँह देखना पड़ा है।
परिवार की एकलौती कमाने वाली है ये महिला
असम(Assam) की राजधानी गुवहाटी से करीब 100 किलोमीटर दूर बक्सा डिस्ट्रिक्ट में रहने वाली यह महिला अपने परिवार की एकलौती कमाने वाली शख्स हैं। लम्बे समय से बीमार चल रहे पति रज्जाक अली इस हालत में नहीं हैं के अपनी पत्नी के इस संघर्ष में भागीदार बन सकें। ज़ुबैदा की एक छोटी बेटी है असमीना जो स्कूल में पाँचवी क्लास में पढ़ती है। नागरिकता की इस लड़ाई को लड़ते हुए तीन बीघा ज़मीन बिक गयी है ज़ुबैदा का कहना है की उन्होंने अपनी पाई-पाई लगा दी है अब उनके पास कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए ना तो धन बचा है ना ही हौसला। उनका यह भी कहना है के उनको सबसे ज्यादा चिंता इस बात की उनकी बेटी असमीना का भविष्य कैसा होगा।
असम(Assam) फॉरेन ट्रिब्यूनल ने घोषित किया विदेशी
गोयबारी गाँव की रहने वाली इस महिला को 2018 में असम(Assam) फॉरेन ट्रिब्यूनल द्वारा विदेशी घोषित कर दिया गया था। उसके बाद से ही ज़ुबैदा खुद को उस देश का साबित करने क लिए लड़ाई लड़ रही हैं जिसमें उन्होंने पूरी ज़िन्दगी गुज़र दी। उन्होंने बैंक के कागज़, पैन कार्ड समेत करीब 15 डाक्यूमेंट्स पेश किये पर इसके बाद भी उनको भारतीय नहीं माना जा रहा है। 150 रुपये दिहाड़ी पर काम करने वाली ज़ुबैदा का कहना है के उन्होंने अपने पिता की 1971 से पहले की वोटर लिस्ट भी जमा की पर वे यह साबित नहीं कर सकीं के वे उनकी बेटी हैं। ज़ुबैदा और उनके पति अब दोनी ही असम के डाउटफुल वोटर्स की लिस्ट में हैं। एक ओर जहाँ देश के गृह मंत्री लोगो को क्रोनोलॉजी समझा रहे है वहीँ रह-रह कर ऐसे मामले भी सामने आते रहते हैं जो हमें यह समझते हैं के NRC कुछ मौकों पर देशवासियों के लिए कितना खतरनाक हो सकता है।