पिछले कुछ दिनों से कई राज्यों के किसान सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे है | । उनकी चिंता इस बात से है कि सरकार नया कानून बनाने जा रही है, जिससे फसलों की न (MSP) की व्यवस्था समाप्त हो जाएगी।
वहीं सरकार का कहना है कि नए कानूनों से MSP पर कोई असर नहीं पड़ेगा और यह व्यवस्था पहले की तरह ही जारी रहेगी।
सरकार किसान की फसल के लिए एक न्यूनतम मूल्य निर्धारित करती है, जिसे MSP कहा जाता है।
यह एक तरह से सरकार की तरफ से गारंटी होती है कि हर हाल में किसान को उसकी फसल के लिए तय दाम मिलेंगे।
अगर मंडियों में किसान को MSP या उससे ज्यादा पैसे नहीं मिलते तो सरकार किसानों से उनकी फसल MSP पर खरीद लेती है। इससे बाजार में फसलों की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव का किसानों पर असर नहीं पड़ता।
एमएसपी तय कौन करता है |
देश में MSP तय करने का काम कृषि लागत एवं मूल्य आयोग का है।कृषि मंत्रालय के तहत काम करने वाली यह संस्था शुरुआत में कृषि मूल्य के नाम से जानी जाती थी। बाद में इसमें लागत भी जोड़ दी गई, जिससे इसका नाम बदलकर कृषि लागत एवं मूल्य आयोग हो गया।
यह अलग-अलग फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण करती है। वहीं गन्ने का MSP तय करने की जिम्मेदारी गन्ना आयोग के पास होती है।
क्या एमएसपी किसी कानून का हिस्सा नहीं थी |
यह सही है कि एमएसपी कभी भी किसी कानून का हिस्सा नहीं था लेकिन नए कृषि कानूनों ने किसानों के मन में संदेह पैदा किया है। उन्हें लगता है कि सरकार धीरे-धीरे गेहूं और धान की खरीद भी बंद कर देगी। केंद्र सरकार यह आश्वासन दे रही है कि एमएसपी पर खरीद बंद नहीं होगी लेकिन किसानों को लगता है कि शांता कुमार कमेटी की जिस रिपोर्ट के आधर पर ये कानून बने हैं उनमें एफसीआई को भंग करने की सिफारिश भी शामिल है। ऐसा हुआ तो मंडियों में खरीद भी बंद हो जाएगी।